शुक्रवार, 4 जुलाई 2008

उल्टा तीर: किस काम के क़ानून ?

उल्टा तीर: किस काम के क़ानून ?#links#links
उल्टा तीर मे जारी बहस
विधि, कानून,नियम इन सबकी उत्त्पत्ति मनुष्य ने सुचारू व्यवस्था बनाने के लिए की थी,लेकिन ये सब मोटी मोटी किताबो मे ठीक लगते है व्यावहारिक रूप मे देखा जाये तो आम जनता जिनके हितों की रक्षा के लिए इन सबका निर्माण होता है वही इन सबसे पीड़ित होता है ,अदालतों मे जाने के लिए हिम्मत चाहिए , जिरह के लिए वकील चाहिए, वकील को मोटी फीस चाहिए, और गरीब कहा से फीस लायेगा ,कहने को तो विधिक सहायता का प्रावधान होता है, पर क्या ये सच मे गरीब को मदद दिला पाती है . अपील दर अपील.............. और अंत मे उसके हाथ क्या आता है एक बड़ा सा शून्य ...जो पहले से सुने जीवन मे शुन्यता भर देता है. अदालतों के इतने रूप हो गए है कि कौन सा प्रकरण किस कोर्ट मे चलेगा किस कोर्ट को क्षेत्राधिकार है यही तय करते करते कई अदालतों के चक्कर हो जाते है मामूली तकनिकी त्रुटी के आधार पर केस को फिर से रिमांड पर भेजना, फैसले को बदल देना ,.....................इन सबमे आदमी पीस जाता है, मामूली यातायात नियमो के उल्लघन के लिए अछे भले आदमी को अपराधी की तरह अदालतों के चक्कर लगाया जाता है और बड़े अपराधिक प्रकरण मे साक्ष्य के आभाव मे प्रकरण खारिज हो जाता है, कई बार समाचारों मे पता चलता है कि विदेश मे इस यातायात उल्लघन नशाखोरी या इस जैसे जैसे छोटे मोटे केस मे कुछ सामुदिक कार्य करने या यातायात से सम्बंधित कोर्स ,ड्रग से निजात पाने का कोर्स ,या अन्य उससे सम्बन्धित कोर्स करने का दंड दिया जाता है वह यहाँ क्यों नहीं है ,क्या सब अपराध का इलाज जेल या अर्थदंड होता है ? क्यों नहीं कुछ रचनात्मक दंड विधान हो ,क्यों बड़े बड़े टैक्स चोर तो बच जाते है लेकिन गरीब आदमी जेल की हवा खाता है, सच कहा जाये तो जितने ज्यादा कानून है लोगो को न्याय मिलने मे उतनी ही ज्यादा परेशानी हो रही है, कुछ लोग जब चाहे किसी भी अदालत मे किसी भी बड़े आदमी के विरुध्द नाम कमाने के लिए केस दर्ज करा देते है अब वो घूमता रहे पुरे देश के अदालतों मे , ............वैसे ही सरकारी अधिकारी कर्मचारियों का स्थान्तरण दूर दूर होता है और उसे अपने सर्विस काल मे कई केस सरकारी अधिकारी कर्मचारी के रूप मे दर्ज करना होता है जब वह अन्य जगह चला जाता है फिर भी उसे उस प्रकरण मे उपस्थिति के लिए पुराने जगह के कोर्ट मे जाना होता है, उसे न जाने अपने सर्विस काल मे कितने प्रकरणों मे घूमना होता होगा अपनी वर्तमान पदस्थापना स्थान से पुरानी जगह के कोर्ट मे घम घूम कर दिमाग ही घूम जाता होगा, फिर वह क्यों किसी प्रकरण मे अपराध दर्ज कराएगा इसलिए वास्तविक अपराध मे भी अपराधी को इस स्थिति का फायदा मिल जाता होगा, थानों मे देखा जाता है कि जब्ती के कितने ही वाहन सड़े गले पड़े रहते है केस के निराकरण के इंतजार मे , क्या ये सब संसाधनों का अपव्यय नहीं है कि कितनी ही सम्पत्ति यु ही जप्त व्यवस्था मे पडा रहे जो भी साक्ष्य लेना हो तुंरत लेकक्र उसे नीलामी सुपर्दगी जन्हा भी देना हो क्यों नहीं दिया जाता क्यों उसे सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है , अब इस बहस पर जितना लिखा जाए उतना ही कम है इसलिए आज बस इतना ही ...............

4 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग ने कहा…

सही कहा माया जी ...कुछ कानून है जिनमे सुधार की जरुरत है ,कुछ कानून है जिन्हें लागू करने की जरुरत है,ओर कुछ नए कानून बनाने की..... ओर हमारी न्याय प्रणाली को किसी फास्ट फॉरवर्ड बटन की.....

admin ने कहा…

जिस तेजी से समय बदल रहा है, लोग बदल रहे हैं, उसी तेजी से कानून एवं संविधान के संशोधन की भी जरूरत है।

Amit K Sagar ने कहा…

बहुत खूब. साथ ही; मुझे बेहद खुशी हुई ये देखकर कि आपने इसकी सार्थकता के लिए इक सराहनीय कदम उठाया. धन्यवाद.

Amit K Sagar ने कहा…

बहुत खूब. साथ ही; मुझे बेहद खुशी हुई ये देखकर कि आपने इसकी सार्थकता के लिए इक सराहनीय कदम उठाया. धन्यवाद.