बुधवार, 6 जनवरी 2010

कुछ कविताएं लेखक श्री मन्नू लाल जी ठाकुर

’’मदिरा महिमा’’
करिस एक जनहितैषी काम, 
गांव गांव खुलगे, दारू दुकाान। 
खाओं पियो और मौज उड़ाओ, 
चैक चैराहा, मुहाटी मा दुकान।। 
सपना मत देखो जरसी गाय के ,
लात मारे खरचा करवाय। 
बनाहू घर कोठा लगे पइसा,
करजा मा बूड़के करम ठठाय।।  
छांद गेरवा , कोटना घलो लगही, 
चारा भूसा मा उपराहा पइसा। 
रतन जतन मा होवय चेंघट,
जांगर थकही, बहाहू पइसा।।
चेपटी के हावय महिमा अपार, 
यार मिलावे, महफिल सजाय। 
अमीर गरीब सबके चहेता,
पिपाला छलके, वंक राजा बन जाय।।
बियर बरांडी हर्रा, सबो मिलथे, 
चेपटी होथे, थान निराला। 
मिक्चर मटन भजिया गोंदली,
खाओ पिओ, स्वाद हे आला।। 
कहां जेहू, मन्दिर गुरूदुवारा, 
रहे दिन रात खूला, मधूशाला।
समाजवाद के दरसन परसन, 
प्रगट करावय मधुशाला।। 
हाथ मा पियाला, मुख मा हाला,
नित जस्न मनावय मधुशाला। 
छटठी बरही , बर बिहाव मा, 
खूब रंग जमावय मधुशाला।।
मेला मड़ई, बजार हाट मा,
भक्तन के रहे, भीड़ अपार। 
पोरा हरेली, देवारी दसराहा, 
मधुशाला करे, सब ला पियार।।
जिगरी दोस्त जिगर के टुकड़ा,
सगा सील के, सम्मान बढ़ाय। 
आरटी पारटी, जहां कहीं होय, 
मधुशाला सबके कदर बढ़ाय।।
खुद पिओ, पिलाओ सब ला,
दारू के नदिया बोहावत हे। 
आंगन मा पिओ, भट्ठी मा पिओ,  
मधुशाला सब ला नहलावत हे।।
शासन करत हे नेक काम, 
बेवहार मा, मदिरा रामबाण।
शासन के भरय, कोठी खजाना,
आबकारी विभाग हे परमाण।। 
मन मा दारू रग रग मा दारू,
दारू सर्वब्यापी, अंग मा समाय।
शासन मदिरा के सम्मान बढ़ाय,
गांव मा जगा जगा दारू बेचाय।। 
छ्त॒तीसगढी कविता ’’चाणक्य’’
परम ज्ञानी अऊ महा प्रतापी, 
देश विदेश मा नामी विद्वान। 
करिया बिलवा दुब्बर पातर, 
मस्तक मा टीका, शिखावान।। 
महाक्रोधी अऊ स्वाभिमानी,
राष्ट्र हित मा करय चिन्तन।
कूटनीति के कुशल खिलाड़ी,
अखंड भारत के करिस चिन्तन।।
नाम बिष्णु गुप्त आचार्य,
चाणक्य नाम से जग चाहिर।  
राजनीति के मुखर वक्ता,
जोड़ तोड़ मा रिहिस माहिर।। 
छोटे छोटे राजा महराजा, 
गृह कलह मा रहय व्यस्त। 
दंभी विलासी राजा मन,
आपसी युद्ध मा होगे पस्त।।
तुर्क यमन आक्रमण कारी,
बाज जइसे झपट्टा मारय। 
कुकुर बिलाई जस लड़इया,
तूफानी हमला नी सम्हारय।।
अखंड भारत के सपना साकार। 
कइसे हाही सपना साकार,
उधड़ बुन मा लगगे कौटिल्य,
युवा चन्द्रगुप्त होनहार।। 
ऊंचपूर कछावर युवक,
मस्तक ओकर दमकस रहय। 
नालंदा के विा पीठ मा, 
राजनीति के अध्येता रहय।। 
ओ दिन ला कइसे बिसराय, 
मगध के राजा करिस अनादर।
शिखा खोल करिस संकल्प,
राजा के अही दिन बादर।।
करिया बाम्हन के घुंस्सा देखबे,
तोर राजवंश के होही पतन। 
राजसिंहासन ले तरबे तेहा, 
काल कोठरी मा होही जतन।। 
भावी राजा के रूप मा होगे,
युवा चन्द्रगुप्त के पहिचान। 
मगध राज मा होगे मुनादी,
बचाना हे मगध के शान।। 
जगा जगा खुलगे सिविर, 
युवा मन के लगिस कतार। 
सैन्य संगठन होन लगिस, 
होही अत्याचारी के तार तार।।
दिन मुहरत नियत समय मा, 
वीर चन्द्रगुप्त करिस हमला। 
नवा राजा पड़िस कमजोर, 
मगध झोंकिस सेना जुमला।। 
चंन्द्रगुप्त ल नवा सीख मिलिस,
मगध ल हराना हंसी खेल नहीं। 
गुरू चेला सोचन लगिन, 
बघवा कोलिहा मा मेल नहीं।। 
निकलगे दूनों अज्ञात दिशा मा, 
रथिया जहां बिताया जाय। 
दुर कुटिया मा दिखिस रोसनी, 
कोन रहिथे वहां सूंघा जाय।। 
महतारी, बेटा ला समझाय,
चन्द्र गुप्त जइसे ते करथस। 
लकरधकर तोला हावय,
तीर छोंड़ मइंद ला खाथस।। 
दूनों झन ला, आगे समझ,
उहा पोह मा मिलिस सहारा। 
समझ मा आगे काबर हारेन, 
कूट नीति के लेबोन सहारा।। 
कोन हे बैरी कोन सहारा,
एकर पहली पता लगाबो।
फुलवारी बनाबो सखा मित्र ला,
बैरी ला खूब मजा चखाबो।।
साम दाम के नीत ला अपनाबो,
दंड भेद ला घला अजमाबो।
विषकन्या राजदरबार मा,
जो संभव ओ सब ल करबो।।
तूफान जइसे चलय चन्द्रगुप्त,
मगध मा मचगे हाहा कार। 
दंभी राजा खइस पटखनी, 
चमचा चाटूकार करय चित्कार।।
पिंजरा के सुवा रू लेखक . श्री मन्नू लाल ठाकुर 
कानून बेवस्था होगे फेल, जंगल मा होगे रक्सा राज। 
फुग्गा फुलावे बजावे गाल, बैरी झपट्टा मारे जइसे बाज।। 
कई कोरी गांव के लोगन ला, बसाइस सहत सिविर मा।
गांव छुटे परिवार उजड़गे, बसिन्दा सोचत हे सिविर मा।। 
खार खेत सब होगे परिया, माल मवेसी जंगल म जाय। 
ए पार नरवा ओ पार ढ़ोंड़गा, दिन रात जी हा गांव मा जाय।। 
लरा जरा के खुब सुरता आथे, चिरई होतेव उड़ के जातेव। 
तिहार बार के सुन्ना लागथे, तिजा नवई लेवा के लातेव।। 
बेटी के नान नान नोनी बाबु, बड़ उतययिल ओमन हाबय।
बरजय बास मानय नहीे, घेरी बेरी नरवा म जावय।। 
का गलती करे हन भगवन, सिविर मा हमला डारे तय हर। 
तन मन मा हमर बेड़ी बंधांगे, का के सजा देवत हस तेहा।। 
वरदी वाला डंडा लहरावे, बात बात म वो खिसयाथे। 
काकरो सुने के आदत नईये, टांट भाखा सुन माथा पिराथे।। 
हमला देखके बन के बघवा, मुड़ी गड़ियाय पूछी ओरमाय। 
टेड़गी धारी ये पुलिसिया मन, धमकी देवे नी सरमाय।। 
चिरई चुरगुन ला उड़त देख, मन हा उड़थे बादर मा। 
कुहू कुहू कोयलिया बोले, थाप लगातेव मांदर हइरना मिरगा नरतन करय,
मूरली बजावे पड़की मैना। 
फुदक फुदक के भठलिया नाचे, कमर मटकावे बन कैना।। 
भर्री मा बोतेव कोदो कुटकी, मईंद खार म लारी बनातेव। 
मड़िया जोंधरा जुवार बाजरा, सूवा रमली दूर भगातेव।। 
आमा अमली अऊ चार तेंदू, सबके अब्बड़ सूरता आथे। 
महुवा फुल बिने बा जातेंव, बांस करील के सुरता आथे।। 
चार चिरौंजी बजार हाट मा, सहेब सुदा मन सूब बिसाथे। 
दूनो परानी संग मा जाथन, नी जाब मा घरवाली रिसाथे।। 
सिविर बंधन तन ला बांधे, मन तरंग मा उड़ि उड़ि जाय। 
कब तक हम बंधाके रहिबो, सूवा पिंजरा मा असकटाय।। 
हमर सुनइया कोनो नइये, लगथे हमला जग अंिधयार।
लाल लाल आंखी सबो दिखाथे, कहां से मिलही हमला पियार।।
बन मा घुमय बन मानुस, दादा दीदी ओमन कहलाय।
घर म जबरन आके घूसय, पेज पसिया सबो कुकरा बासत घर से निकले, जावत बेरा घुब धमकाय।। 
पुलिस वाला आवे चढ़ती बेरा, बांध के लाने पुलिस थाना। 
गारी बखाना खुब देवय, लात घुसा के रहय पीना खाना।। 
दलम वाला हमर दार दरे, पुलिस वाला करय पिसान।
जाता मा हम पिसावत हन, नी बाचय थोरको निसान।।
धरती वाला सब आंखी मंूदे, हमला सब कोई डरवाय। 
प्रभू घर मा देर हे अंधेर नहीं, तेहा काबर चुप मिटकाय





2 टिप्‍पणियां:

36solutions ने कहा…

बहुत सुन्दर कविताये. श्री मन्नू लाल जी ठाकुर का आभार.

sumant ने कहा…

एक नया जोश एक नया वक़्त एक नया सवेरा लाना है
कुछ नए लोग जो साथ रहे कुछ यार पुराने छूट गए
अब नया दौर है नए मोड़ है नई खलिश है मंजिल की
जाने इस जीवन दरिया के अब कितने साहिल फिसल गए

अत्यंत खूबसूरत प्रस्तुति
www.the-royal-salute.blogspot.com