बुधवार, 6 जनवरी 2010

एक गरम चाय की प्याली

एक पुराना गीत आज याद आ गई," एक गरम चाय की प्याली हो"आज सुबह की ठण्ड बहुत कड़ाके की थी उसके लिए यदि सुबह सुबह एक चाय की प्याली मिल जाए तो गर्माहट आ जाती है,आजकल इस सर्द भरे मौसम मे गाँव की राजनीती मे भी गर्माहट आ गई है,हर गाँव मे आजकल नेता बनने की होड़ मची है,लोग पञ्च से लेकर जिला पंचायत और उसके अध्यक्ष पद तक का सपना देख रहे है,निश्चित ही गाँव अब वो पुराना गाँव नहीं रहा.जब गुड की चाय पिला कर लोगो कि मेहमानवाजी की जाती थी, कड़क मीठी चाय का आनंद ही कुछ और होता था,कभी हरिशंकर परिसाई जी का एक लेख याद आ रही जिसमे लेखक महोदय कुछ लिखने कि मकसद से एक गाँव जाते है,तब उनके पास क कोरे कागज को देखकर गाँव मे आवेदन लिखने की होड़ मच जाती है,कुछ वैसे ही लोगो मे अब नेता बनने कि ललक दिख रही है, चुनाव लड़ने का रोमांच ही कुछ और होता है,कुछ तो नाम हो ही जाता है,विकास क सपने सपने को साकार करने क वादे तो सभी करते हैपर उनके इरादे क्या है आप हम सभी अच्छे से जानते है.....

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