शनिवार, 16 जुलाई 2011

बेटा के मया लेखक- श्री मन्नू लाल ठाकुर



21 अक्टूबर 2010

जेठ महीना के लकलक धाम,  लहुटावत हे छानी के खपरा ।
थपथप थपथप बहे पसीना चिल्लावत हे डोकरा बपुरा ।।
उतर जा बेटा होगें मंझनिया आगे सब बासी खवइया मन  ।
तरवा में सोज बेर हा चमके चलत हे संाझ सन सन सन सन ।।
धाम प्यास ला सोचबोन तो कइसे सरकही धर बूता काम  ।
जाड बसात अउ पानी बरसात लगें रबोन तब होही सब काम  ।।
धु़रुर धावर करत हे जेठ लहुवाथस काबर तेहा मोला  ।
तोर गतर हा चलत नइयें करइया मेंहा संसो हावे तोला  ।।
बगरें हावे अब्बड कंाटा खुंटी सफाई कराबोन खेत खार के  ।
जोरा खूबेच करे बर लागही करबोन बंेवस्था  सब नेत के  ।।
बासी पेज खा के तें छइंहा मा सुत मोला अपन काम ला करन दे  ।
बुदबुदावत हे डोकरा मन मा, अब्बढ़ होथे संतान के ममता  ।।
बेटा चढ़ें सरी मंझनिया छानी मा धकधक तड़पय मोर ममता  ।
कहे बंोले ला बेटा सूनत नइये अपन धुन मा करत हे काम  ।
अंगरी मा सब फफोला परगे उतरे बर नी लेवत हेे नाम  ।।
सोचत हे अइसे येंहा नी माने, नाती ला गोदी मा उठा के लानिस  ।
रोवत हे लइका उसनिंदा मा, टंेहो टंेहो लइका करन लागिस  ।।
आगें डोकरा बिच अंगना मा, कठल कठल के लइका रोवय  ।ं
झंुठ मुठ लइका ला पुचकारय, कहंा लें लइका ला चुप हांेवय ।।
रोवाथस काबर तें लइका ला, बरजत हे बेटा उपर छानी ले  ।
अपन मया तोला पिरावत हे, कइसे चिचयावत हस छानी ले  ।।
रकपिक रकपिक बेटा उतरिस, बेटा ला बेटा कोरा भुरयावत हे  ।
छानी ले बेटा ला उतरत देख, डोकरा के जी अब जुडावत हे  ।।
डतरें के बेरा मा उतरहूं मेहा, एक रददा ला रेगावन दे ।।

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