13 नवम्बर 2008 कार्तिक पूर्णिमा
आइस एक झन पुलुस सिपाही, बइठंे रिहिस फटफटी गाड़ी मा ।
कमावत रिहिन लइका सियान, तरिया तीर के मिरचा बाड़ी मा ।।
हंाक लगाइस पुलिसिया धुन मा, अरे कमइया सून रे इधर ।
ए गंाव मा रहिथे नामी चोर, नाम हे ओकर उमकु जंगधर ।।
कहंा चल दिस नइये घर मा, साले भागे भागे फिरत हावय ।
लगाहुं लात बरसाहुं डंडा, जेल के हवा जिदगी भर खावय ।।
केरा पान अस कमइया कांपे, फूटत नइये मुंह ले बक्का ।
लदलद लदलद गोड हा कापे, कहा करिस कहा उतारत हे ।।
कुछ नी जानन हम हा साहब, मन मन खुबंेच धिक्कारत हे ।
ए परलोखिया ला घमंड हे खुब, वरदी के गरमी गरमावत हे ।।
बोले के थोरको होस नइये बेसरम हा नी सरमावत हे ।
घूमत हे खेखर्री कुकुर जस, जगा जग सुसवावत फिरय ।।
नी जाने थार को लोक बेवहार ला, नीच गंवार पतित नरक गिरय ।
अइस सुराज सन सैंतालिस मा जगा-जगा तिरंगा फहराइस ।।
उतरगें थोथना फिरंगी मन के, प्रजातंत्र के पताका लहराइस ।
बदलगे बंेवस्था शासन के, नी बदलीस फिरंगी परिपाटी ।।
लुचपत बिन सर न उठावे, सरमावत हे गौतम के माटी ।
बाबू बोस के पूदगा हा जामगे, थाना अदालत मा रोवय गांधी ।।
बीबी बच्चा के नाम पर मान्गे, बहत हे रिसवत के आंधी ।
सरग ले देखे महावीर स्वामी, अहिंसा परमो धरम के हाल ।।
भक्षण करे मंास मंदिरा के, लबारी बोले होवे मालामाल ।
संत सिरोमणी गुरु गोविंद सिंह, रद्दा बताइस बलिदान के ।।,
भगत सिंह करय गरजना तसवीर बदलगे हिंदुस्तान के ।
छुछु कस छुछवावत हावय बटोरत हावय भूरी चाटी जस ।।
कलंक के टीका माता के माथा मा, देखे पुरखा होवे असमंजस ।
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