शनिवार, 16 जुलाई 2011

फिरंगी परिपाटी लेखक- श्री मन्नू लाल ठाकुर



13 नवम्बर 2008  कार्तिक पूर्णिमा

आइस एक झन पुलुस सिपाही, बइठंे रिहिस फटफटी गाड़ी मा  ।
कमावत रिहिन लइका सियान, तरिया तीर के मिरचा बाड़ी मा  ।।
हंाक लगाइस पुलिसिया धुन मा, अरे कमइया सून रे इधर  ।
ए गंाव मा रहिथे नामी चोर, नाम हे ओकर उमकु जंगधर  ।।
कहंा चल दिस नइये घर मा, साले भागे भागे फिरत हावय  ।
लगाहुं लात बरसाहुं डंडा, जेल के हवा जिदगी भर खावय  ।।
केरा पान अस कमइया कांपे, फूटत नइये मुंह ले बक्का  ।
लदलद लदलद गोड  हा कापे, कहा करिस कहा उतारत हे  ।।
कुछ नी जानन हम हा साहब, मन मन खुबंेच धिक्कारत हे  ।
ए परलोखिया ला घमंड हे खुब, वरदी के गरमी गरमावत हे  ।।
बोले के थोरको होस नइये बेसरम हा नी सरमावत हे  ।
घूमत हे खेखर्री कुकुर जस, जगा जग सुसवावत फिरय  ।।
नी जाने थार को लोक बेवहार ला, नीच गंवार पतित नरक गिरय  ।
अइस सुराज सन सैंतालिस मा जगा-जगा तिरंगा फहराइस  ।।
उतरगें थोथना फिरंगी मन के, प्रजातंत्र के पताका लहराइस  ।
बदलगे बंेवस्था शासन के, नी बदलीस फिरंगी परिपाटी   ।।
लुचपत बिन सर न उठावे, सरमावत हे गौतम के माटी  ।
बाबू बोस के पूदगा हा जामगे, थाना अदालत मा रोवय गांधी  ।।
बीबी बच्चा के नाम पर मान्गे, बहत हे रिसवत के आंधी  ।
सरग ले देखे महावीर स्वामी, अहिंसा परमो धरम के हाल  ।।
भक्षण करे मंास मंदिरा के, लबारी बोले होवे मालामाल  ।
संत सिरोमणी गुरु गोविंद सिंह, रद्दा बताइस बलिदान के  ।।,
भगत सिंह करय गरजना तसवीर बदलगे हिंदुस्तान के  ।
छुछु कस छुछवावत हावय बटोरत हावय भूरी चाटी जस  ।।
कलंक के टीका माता के माथा मा, देखे पुरखा होवे असमंजस  ।


-------------//-----------

1 टिप्पणी:

डॉ. सुधीर शर्मा ने कहा…

Chhattisgarhi cinema par aapka blog dekha ise aur aage vistaar dijiye
Pl visit our website
www.sahityavaibhav.com
www.shodh-prakalp.com
www.jaichhattisgarh.com
& Vaibhav Prakashan Raipur
09425358748