रविवार, 14 सितंबर 2008

आख़िर कब तक

आख़िर कब तक यु ही घर उजड़ते रहेंगे
बमों की बारिश से लोग मरते रहेंगे
क्यो नही ,हम कुछ सोचते
अपने धर्म ग्रन्थ को बांचते
कंहा लिखा है निर्दोषों की हत्या
बदले की आग मे जलना
आदमी को जिन्दा जलाना
बच्चो को जिदगी भर के लिए रुलाना
बारूद की ढेर पर
कब तक बैठे रहोगे
एक दिन
तुम भी जाओगे जल
तुमको याद नही क्या वो पल
आख़िर कब तक
बिछाओगे लाश
क्यो नही करते
अमन की तलाश




2 टिप्‍पणियां:

36solutions ने कहा…

सुन्‍दर कविता, करारा प्रहार । आभार

दीपक ने कहा…

मन की कोमलता से यथार्थ को जीतने का मार्मिक आह्वान !!