गुरुवार, 23 अक्तूबर 2008

जनता तू खामोश क्यो

भ्रष्ट ,चरित्रहीन,कायर,दोगले मापदंडो के सहारे जीने वाले लोगो को हमारे राजनीतिक दल टिकिट दे रहे ओउर अंततः उन्ही मे से हमें अपने प्रतिनिधि चुनने होंगे , आख़िर कब तक ?क्या है विकल्प इन सफेदपोश लोगो को लोकतंत्र को जागीर बनाने से रोकने का , सत्ता भ्रष्ट करती है ओउर पूर्ण सत्ता पूर्ण भ्रष्ट । जब इन्हे सत्ता मिलेगी तो भ्रटाचार कहा से रुकेगी ,भारतीय समाज शाशन मे भ्रष्टाचार ने कितनी पैठ बना ली है की लगभग आम जानो को भी स्वीकार्य हो चला है आखी क्यो नही हम भ्रटाचार के खिलाफ जंग की शुरुआत करते ,मेहनती किसान मजदुर व्यापारी छोटे व्यवसायी अपने खून पसीने की कमी को भ्र्ताचारियो के हाथो कब तक सौपते रहेंगे ,क्यो नही साफ़ स्वच्च्छ छवि के लोग लोकतंत्र की आबरू बचाने सामने आते हम नही देखते की चुनाव मे पानी की तरह पैसा कहा से बरस रहा है ......कौन है इनके सरंक्षक ? बड़े पदों पर बैठे भ्रष्ट अधिकारी बड़े व्यवसायी अपराध की दुनिया से जुड़े लोग। यही तो है इनके गाडफादर .... कब तक हम निरीह बने रहंगे । चुनाव के समय हाथ जोड़ने वाले यही लोग सत्ता मे आते ही घुड़की देने लगते है सियार की तरह रंग बदलने वाले इन भ्रष्ट नेताओ को जनता ही सबक सिखा सकती है और विकल्प के तौर पर हमें इन्हे इतनी शक्ति नही देनी है की ये अपने पद के लिए निश्चिंत रह सके चूँकि अभी जनता को रिकाल का अधिकार नही मिला है इसलिए हमें अधिक से अधिक निर्दलीय और अन्य छोटी पार्टी के प्रत्याशी को जिताना होगा ताकि बड़े राजनीतिक दल इन पर निर्भर रहे ,स्थिर सरकार का तर्क ये सिर्फ़ अपनी स्थिरता के लिए देते है न की आम जनता के हित के लिए ,चुनाव मे खड़े हुए जितने बड़े चेहरे है उन्हें तो इस चुनाव मे जमीनी हकीकत से रूबरू कराने का वक्त आ गया है आप भी भ्रस्टाचार के विरुद्ध इस जंग मे शामिल होकर बेनकाब कीजिये सफ़ेद पोश अपराधियों को ......................

1 टिप्पणी:

36solutions ने कहा…

चार पांच माह पूर्व छत्‍तीसगढ के एक दैनिक में दिल्‍ली के एक सांसद और स्‍थानीय संपादक के लम्‍बे वार्तालाभ का सार क्रमिक रूप में प्रकाशित हुआ था जिसमें उस सांसद नें इस विमर्श को आगे बढाते हुआ कहा था कि पांच साल तक जो मालदार पोस्‍ट हथिया लेते हैं उन्‍हें तो कोई समस्‍या नहीं रहती किन्‍तु जिन्‍हें सिर्फ सांसद या विधायक बने रहना पडता है उन्‍हें अपने आगामी चुनाव के बजट के लिये वह सब करना पडता है जो उनकी जमीर नहीं चाहती । यदि आप योग्‍य और स्‍वच्‍छ छबि वालें हैं जबरदस्‍त जनता में पकड है, फिर भी आपके पास चुनाव खर्च के लिये ढेला भी नहीं है तो आपको टिकट नहीं दी जायेगी इस पर करेला चढा कि भाई भतीजावाद हावी ।
इसके कारण सहीं व्‍यक्ति मैदान में आ ही नहीं पाता ।

बहस सार्थक है, बनाए रखें ।