बुधवार, 12 नवंबर 2008

हे भगवान् ये क्या हो रहा है?

चारो तरफ़ चिल्ल पौ , गाडियों जुलुस नारों क बीच आदमी पीसता जा रहा है, हम सोचते है की नारे लगाने से चिल्लाने से भाषण देने से व्यवस्था सुधर जायेगी, भ्रटाचार मिट जायेगा,चुना व् मे नए नेता चुन लिए जाने से बदलाव आ जायेगा ,....लोग चाहे कितनी ही कोशिश करे लेकिन जब तक वह दोहरे मापदंड अपनाता रहेगा बदलाव सम्भव नही है,जब आदमी ख़ुद को नही बदलेगा और सिर्फ़ भाषण देकर दुसरो क बदलने का इंतजार करता रहेगा तब तक बदलाव नही होगा,जब तक हम ऐसे भर्स्ट नेता को वोट देते रहंगे इस उम्मीद मे की वह कम से कम मेरा कम तो कर देगा तब तक बदलान नही होगा,..हम चीखे चिल्लाये रोये गाये ...?इससे क्या,।
क्यो नही किसानो के बारे मे बात करते?इस देश की बहुसख्यक आबादी किसानो की है खेती से जुड़े उद्योगों की है लोग चिल्ल पौ मचा रहे मंदी है शेयर बाजार गिर रहा है मंहगाई बढ़ रही है? क्यो नही बढेगी महगाई? जब हम उद्योग की बात करते है व्यवसाय की बात करते है तो इनका बाजार कौन है बहुश्यक लोग किसान ही न यदि इनका जीवन स्तर नही सुधरगा क्रय सक्तीनही बढेगी तो फिर उत्पाद कौन खरीदेगा । टीवी फ्रिज मोबाईल डेक टेप कैमरा,कर बाइक के ग्राहक अब शहरो मे नही है लोगो के पास ये सब हो चुका है मध्यवर्ग भी इन सुविधाओ का उपयोग कर रहा है फिर जो बाजार है वह ग्रामीण बाजार ही है ओउर इनकी क्रय शक्ति तभी बढेगी जब इनके उत्पाद को सही दाम मिलेगा खेती किसानी को सुधारने के लिए उत्पादन बढ़ाने के लिए वित्त की जरुरत है इनकी पूर्ति के प्रयास के आश्यकता है,सिर्फ़ शहरी वर्ग को ध्यान मे रख कर अर्थव्यवस्था चलाई जायेगी तो बाजार मे मंदी रहेगी मध्यवर्ग का रोजी रोजगार खतरे मे रहेगा व्यवसाय मे व्र्ध्दी नही होगी।.................. और शेयर बाजार लुढ़कते रहेगा। आज जरुरत है ग्रामीण योजनाओ की ग्रामीण बेरोजगारी को दूर करने की जो सिर्फ़ कारखाने खोलने से दूर नही होगा खेती किसानी से लगे परिवार के बच्चे इसमे लगे रहे उन्हें भी पर्याप्त आमदानी हो एईसी व्यवस्था देनी होगी .

1 टिप्पणी:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया विचार प्रेषित किए हैं।लेकिन इस ओर सरकार ध्यान नही देती।क्युकि यहा सभी फैसले अधिकतर पुंजीपतियो को ध्यान मे रख कर किए जाते हैं।