बुधवार, 5 नवंबर 2008
राज्यों के लिए दोहरी नागरिकता :क्षेत्रवाद की राजनीती का हल ?
भारतीय राज्यों मे जिस तरह से क्षेत्रवाद की राजनीती चल रही है उसी तरह से भाषाई अलगाव का विवाद होते रहना भारतीय गण तंत्र की गरिमा के प्रतिकूल है ,लेकिन इस विवाद के पीछे कुछ राजनीतिक हित है साथ ही यह सच्चाई भी की कुछ प्रदेश के लोग शांत स्वाभाव के है तो कुछ प्रदेश के उग्र तामस ,भारत के सुदूर वनाचल मे जन्हा आदिवासी निवासरत है वही उन जगहों मे अन्य प्रदेश के लोग भी जर जोरू जमीन पर कब्जा जमाते जा रहे है और बेचारे आदिवासी अपनी खनिज संपदा जमीन बेचकर बेघर होने को मजबूर होते जा रहे , छत्तीसगढ़ के कई इलाको मे भी बेशकीमती जमीनों पर अन्य प्रदेश वासियों का धीरे धीरे घुसपैठ बढ़ती जा रही है यही नही यहाँ की राजनीती मे घुस कर नेत्रित्व हासिल कर चुके है ओद्योगिक क्षेत्रो मे ही नही बड़े बड़े कृषि फार्म भी अन्य प्रदेश के लोग बड़ी तेजी से इस जैसे प्रदेश मे खरीदते जा रहे है क्षेत्रवाद की बात सोचने मे संकुचित जान पडती है लेकिन क्या उस प्रदेश के मूल निवासियों को तो कुछ प्राथमिकता सरक्षण नही देनी ही होगी ?छटवी अनुसूची आदिवासी क्षेत्रो मे लागु की गई है ताकि उन क्षेत्रो मे आदिवासी हितों को सुरक्षित किया जा सके वैसे ही कुछ कठोर प्रावधान की आवश्यकता है जो स्थ्य्नीयअ हितों नागरिको को सरक्षण प्रदान कर सके
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