गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

दिसम्बर की बारीश

फिर वही बारीश
ठन्ड का अह्सास
कपकपाते  हाथ,
देखता हुआ,
खेत की मेड पर
खडा रहा
धान के ढेर को
अध कटी फ़सल को
शायद इस साल भी
खाली हाथ ही रह जायेगा
मेहनत का फ़ल
साल भर
इन्तजार के बाद
खेत मे ही रह जायेगा
किस्मत
भाग्य
नसीब
सब यु ही रुठ जायेगा,
बारीश
..बरसात मे
जब बरसना था
नही बरसा
अब बरसा
तो मन
क्यो तरसा
...
फिर से इन्तजार
फिर वही उम्मीद
आने वाले साल की
जब फ़सल
बढिया होगी
उम्मीद
के सहारे
जीते लोग
इन्तजार मे
अगले बरस का

4 टिप्‍पणियां:

कडुवासच ने कहा…

... bhaavpoorn rachanaa !!!

36solutions ने कहा…

इस दर्द को घटते कृषि क्षेत्र का किसान ही महसूस कर सकता है, आभार आपका.

rajesh singh kshatri ने कहा…

bahut khubsurat rachna.

Creative Manch ने कहा…

सुन्दर रचना
अच्छे भाव हैं

बधाई
आभार