गुरुवार, 13 नवंबर 2008

नजमा हेपतुल्ला ,ममता बनर्जी मार्गरेट अल्वा के बाद कौन ?

कांग्रेस के महिला नेत्रियों को एक के बाद एक पदच्युत किया जा रहा है,कभी बंगाल की शेरनी कही जाने वाली ममता बनर्जी हो या नजमा हेपतुल्ला और अब मार्गरेट अल्वा को किस बात की सजा दे रही कांग्रेस ....साफगोई के लिए ... मार्गरेट अल्वा ने जो आरोप लगाये है वे बहुत संगीन है कांग्रेस को चाहिए था की इस बात की जांच की जाती न की उन्हें जिन्होंने सच बोलने का साहस किया को ही दण्डित करे, कांग्रेस की ये कैसी अनुशासन समिति है जो अनुशासन हीनता के नाम पर सच को छिपाना चाहती है। इनकी ही समिति द्वारा टिकिट वितरण के मापदंड बनाये गए थे और दोहरे मापदंड अपनाकर समिति की सिफारिश को तोड़मरोड़ कर लागु किया गया .एक के बाद एक महिला नेत्रियों को जिस तरह से कांग्रेस से तोडा जा रहा है उसका नुक्सान कांग्रेस को ही होगा।
छत्तीसगढ़ मे भी सिर्फ़ नेताओ के चेहेते लोगो को टिकिट वितरण किया गया है और उन लोगो को जो चापलूसी नही करते जो किसी नेता को गाडफादर नही बनाये है उन्हें टिकिट से वंचित किया गया है ,छत्तीसगढ़ मे उन पुराने आदिवासी नेताओ दलित नेताओ को कांग्रेस से धीरे धीरे तोड़ दिया गया है जिनके बलबूते कंग्रेस्स्स का जनाधार था, कई महत्वपूर्ण आदिवसी जाति का तो राज्य मे प्रतिनिधित्व के लिए भी कोई नेता नही है आख़िर क्यो? गोड़ कंवर हल्बा उराव जाति का आज कांग्रेस के प्रतिनिधि नेताओ को जिस तरह से हाशिये पर लाया गया है वह कबिलेगोर है आदिवासी दलित और अब महिला नेत्रियों को जो अपने सिध्दांतो उसूलो के आधार पर राजनीती मे थे शायद कांग्रेस को उनकी जरुरत नही है ।
नजमा हेपतुल्ला ममता बनर्जी मार्गरेट अल्वा जी मुखर नेत्रीय रही है और इनके कार्य व्यवहार से जनता प्रभावित होती रही है अब यदि इनके जैसी महिला नेत्रियों के साथ कांग्रेस मे यह व्यवहार है तो फिर सोच सकते है की कांग्रेस की चिंतन विचार की दिशा क्या है और दोहरा मापदंड किन किन जगहों मे इनके द्वरा अपनाया जाता होगा। सिर्फ़ बड़े नेताओ के साथ लगे लोगो को तवज्जो दी जाती रहेगी तो नई नेत्र्य जो साफसुथरे विचार के हो क्योकर कांग्रेस मे आयेंगी ,

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

माया जी,
आपके इस एख ने आपके विचारों से अवगत कराया, क्या सचमुच आपको नही पता की अनुशाशन विशेषकर घर का अनुशाशन किसे कहते हैं या फ़िर आप सिर्फ़ महिला का होना कह कर एक पक्ष विशेष पर राय रख रही हैं ?
नजमा हेपतुल्ला और ममता की कारगुजारी जग जाहिर है, आलवा जी पार्टी के अन्दर की बात को जिस तरह प्रेस में ले गयीं नि:संदेह परिणाम तो आना ही था.
रही सच की बात तो ये सब को पता है की टिकट की बंदरबांट सभी पार्टियों में होती है, टिकट बेचने का पुराना धंधा रहा है परन्तु इस मुद्दे को जिस तरह से अल्वा जी ने सामने रखने की कोशिश की है, अपेक्षित परिणाम है.
क्या आप चाहेंगी की आपके घर का झगडा घर के लोगो के बजाय पंचायत में सुलझाएं?

36solutions ने कहा…

परेशानी तो यह है कि ऐसी टिप्‍पणियों को राहुल बाबा और सोनिया जी पढ नहीं पाते ना जी । जो यहां के लोग उन्‍हें बतलाते हैं वे वही सुनते और समझते हैं । पर मेरा मानना है कि पार्टी चाहे जो भी प्रतिनिधित्‍व करे या जीते छत्‍तीसगढ में तो इस कार्यकाल में आदिवासी नेतृत्‍व की प्रधानता परिलक्षित अवश्‍य होगी ।


जय बूढा देव ........ ।

Unknown ने कहा…

"आप लोगो ने लेख पर प्र्त्युत्तर दिया उस्के लिये आभार " रज्नीश जी ने उचित ही लिखा है कि घर का झगरा पन्चायत मे नही सुल्झाइ जाती उसका निराकरन तो घर मे ही होता है और आज कान्ग्रेस की राज्नीति सास बहु की सीरियल की तरह से चल रही है.और शायद यु ही चल्ती रहेगी.सभी दलो मे चल रहा है तो और भी बेह्त्तर है और शयद उन पर भी लिख्ना जाना गुनाह होगा क्योकि ये भी शायद उन दलो के लिये घर की बात होगी ,और भार्तीय राज्नीति लोक तान्रिक पध्द्तियो की जगह घर से चलाइ जाती रहेगी.